रात एक निर्जन सड़क पर
एक कवि खडा था
उसका पेट भरा था
सामने एक भूखा भिखारी खडा था
वह भूख मिटाने अडा था
दूर ऊंचे आकाश में चाँद को देख
वह कवि सहसा मुस्कुराया
क्योंकि उसमे प्रियतमा का चेहरा नज़र आया
उस चाँद को देख वह भिखारी भी मुस्कुराया
और कहा कवि से -''बाबू वह देखो!''
पूछा कवि ने-
''क्या? प्रिया का मुखडा?
उसने कहा -''नहीं रोटी का टुकडा!''
Saturday, January 17, 2009
Monday, January 12, 2009
बांटो प्यार सबके दिल में
जहाँ के चमन में खिले हो फूल की तरह
बांटो प्यार सबके दिल में रसूल की तरह
उदो ज़मीन से आसमां में धूल की तरह
सच्चाई में रहो तुम उसूल की तरह
बांटो प्यार सबके दिल में रसूल की तरह
उदो ज़मीन से आसमां में धूल की तरह
सच्चाई में रहो तुम उसूल की तरह
Wednesday, January 7, 2009
Baanto pyaar sabke dil me
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